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प्यार

चुप्पी की पीड़ा
चुप्पी की पीड़ा
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ऐ प्यार तुम्हें टुकड़ों में पाया है
तूने तो हर पल खुद को लुटाया है
जब भी भटका अंधेरी गलियों में
मेरे लिए खुद को जलाया है
तुम मां थे जब पालने में था
पिता बन संभालने में था
भाई-बहन बेटा-बेटी
रिष्तों का कई रूप दिखाया है
ऐ प्यार तुम्हें टुकड़ों में पाया है
ईष्वर के बंदन में
मन के स्पंदन में
नवजात के क्रंदन में
खुषबू जैसे चंदन में
घिस करके सिल्ली पर खुद को मिटाया है
ऐ प्यार तुझे टुकड़ों में पाया है
बसंती हवाओं में
उसकी अदाओं में
मिलन की कामना
सच का सामना
खुद को संवारने को आईना दिखाया है
ऐ प्यार तुझे टुकड़ों में पाया है
षब्दों में कभी ओम लगे
कभी पत्थर कभी मोम लगे
कभी सीधे कभी दुरूह लगे
कभी जिस्म कभी रूह लगे
डगमगाए कदम जब भी तूने हाथ बढ़ाया है
ऐ प्यार तूझे टुकड़ों में पाया है
सब पाकर खोया था तुमको
सब खोकर पा लिया तुमको
हिमालय की उंचाई भी
सागर की गहराई भी
डूबना जब भी चाहा षिखर पे बिठाया है
ऐ प्यार तूझे टुकड़ों में पाया है
कभी सिर पर सिंदूर बने
पूरी दुनिया की नूर बने
जब दूर रहे तब पास लगे
जब पास हुए तो दूर बने
तूने तो अपना माना पर मैंने बहुत सताया है
ऐ प्यार तूझे टुकड़ों में पाया है
तू धरम लगे ईमान लगे
मन मंदिर में भगवान लगे
अब तो जाने के दिन हैं ले लो जो भी बचाया है
ऐ प्यार तूझे टुकड़ों में पाया है
बिन रिष्तों को कोई नाम दिए
किसी एक जनम हमसे मिलना
जब उम्र को ले तकरार न हो
मजहब की दीवार न हो
जब मैं और केवल तू होगा
फिर मैं भी नहीं सिर्फ तू होगा तू होगा तू होगा

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