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मुस्कुराएं, अमीर हो रहे हैं अपने नेता

चुप्पी की पीड़ा
चुप्पी की पीड़ा
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दुनिया की चौथी सबसे अमीर नेता हैं सोनिया गांधीं—मायावती की संपत्ति ११ करोड् से १११ करोड् रुपये हुई। यह खबर पढ्कर समझ नहीं पाया कि खुश हुआ जाए या मातम मनाया जाए। पहले तो जी चाहा कि जोर-जोर से चोर-चोर चिल्लाऊं। पता नहीं क्यों  ऐसा नहीं कर पाया। मुस्कुरा भर दिया। यह नहीं समझ पाया कि किस पर, देश की शासन व्यंवस्था की बेबसी पर या अपनी। ऐसा नहीं है कि जयलतिता, जगन मोहन, रेड़डी बंघु, सुखराम, लालू, चौटाला, अंतुले, राजा जैसे ज्ञात स्रोतों से अधिक की संपत्ति वाले नेताओं के चेहरे याद आ गए। ऐसा भी नहीं हुआ कि चारा, कामनवेल्थ, २जी, एनआरएचएम, आदर्श जैसे घोटालों की सूची इतनी लंबी है कि गिना नहीं सकता। शायद इसलिए कि मैं भी देश का कथि‍त‍ बुदि़धजीवी हूं और उम्मीद का दामन नहीं छोड.ता। उम्मीद यह है कि जब नेता धनी हो गया तो जनता भी एक न एक दिन धनवान जरूर बन जाएगी। घोटालों पर न जाएं ये तो इन महान नेताओं के धनवान बनने के साधन मात्र रहे, साध्यं नहीं। मैं तो यह भी नहीं जानता चाहता कि ये खाकपति से लाखपति और फि‍र करोड.पति से अरबपति कैसे बन गए़। मैं तो बस इतना चाहता हूं कि प्रबंधन के जिस गुर से ये धनकुबेर बने उसे जनता के रहनुमा होने के नाते देश्‍ा की जनता को भी सिखा दें। यदि ऐसा हो जाए तो जाडे की ठंडी रात में कोई अपने बच्चे को लेकर फुटपात पर सोने को मजबूर नहीं होगा। कोई दवा के लिए पेसों के अभाव में दम नहीं तोडे्गा। मैं ओड्शिा के कोरापुट या कालाहांडी की बात नहीं करना चाहता और न ही झारखंड के आदिवासियों की कथा व्यथा पर जाना चाहता हूं। ऐसा इसलिए कि उनके भोलेपन की पूंजी को जिस तरह से उनके अपनों ने लूटा है उससे देश की जनता अनभिज्ञ नहीं है। मैं नरस‍िम्हा राव की सरकार को बचाने के लिए झारखंड के आदिवासी नेताओं को दिए गए करोडों रुपये की बात भी नहीं करना चाहता। मैं तो उस शासन व्यकवस्था के आगे नतमसतक हूं जिसके आशीर्वाद से एक कंपनी का शीर्ष अधिकारी बगैर झारखंड को देखे सर्वोच्च सदन में पहुंच जाता है। कोई यह मत पूछे के नतमसतक शर्म से हूं या उस व्यवस्था के खिलाफ कुछ नहीं कर पाने की वजह से अपराध भाव से। मुझे लगता है कि लोकपाल के नाम पर जो विरोध हो रहा है वह जारी रहेगा। ऐसा इसलिए नहीं लोकपाल विधेयक पारित नहीं हो बल्कि इसलिए कि ऐसा कानून बने जिसमें इतनी खामियां हों कि सारे सफेदपोश अरबों निगल जांए और डकार पर कोई चू तक नहीं कर सके। आवाज उठाए उसे नक्सलियों की भाषा बोलने वाला करार दे दिया जाए। इसके साथ ही अपने अंदर का अलकतरा इस तरह से उसके चेहरे पर पोतने का प्रयास किया जाए कि उसे छुड्राने में ही चार-पांच साल निकल जाए।
ऐसा नहीं है कि मैं नाउम्मीद हो गया हूं। समय रास्ता खुद दिखा देता है। जब स्वर्गीय चंद्रशेख्रर प्रधानमंत्री बने थे तो देश्‍ा विदेशी मुद्रा संकट से जूझ रहा था और तब देश का सोना विदेशी मुद्रा के लिए गिरवी रखा गया था। तब परिस्थितियों ने मजबूर किया और आज भारत दुनिया की शीर्ष अर्थव्‍यवसथा बनने की ओर अग्रसर है। उसी तरह  जब भ्रष्टाचारी नेता भी हद कर देंगे तो देश की जनता अपना रास्ता तलाश लेगी।

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